व्यक्ति तभी तक दुखी रहता है, जब तक वह अपने को दुखी मानता है. दुखी वही है जो कर्म पर विश्वास नहीं करते. प्राणी दुखी इसी कारण से है कि जो वह चाहता है वह मिलता नहीं हैं, जो मिलता है वह भाता नहीं है. वही दुखी है. सुखियों को देखकर प्रसन्न होना तथा दुखियों को देखकर करुणा से द्रवित होजाने वाला ही सच्चा वैष्णव है.
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