ईसाई को हिंदू या बौद्ध बनाना अथवा हिंदू या बौद्ध को ईसाई बनाना आवश्यक नहीं. परन्तु प्रत्येक को दूसरे की भावना आत्मसात करनी है और साथ ही अपना वैशिष्ट्य अक्षुण रखते हुए अपने ही नियमों के अनुसार विकास करना है. सर्व धर्म सम्मलेन ने यह सिद्ध कर दिया है कि धार्मिकता, पवित्रता और सहिष्णुता विश्व के किसी एक मठ की बपौती नहीं है और प्रत्येक व्यवस्था ने उदार चरित्र अन्यतम नर एवं नारी उत्पन्न किये हैं - प्रत्येक धर्मपताका पर अब प्रतिरोध के स्थान पर अंकित होगा 'लड़ो नहीं, साथ दो ' खंडन नहीं - संगम, समन्वय और शान्ति - विग्रह नहीं.
...........स्वामी विवेकानंद
sab vachan padkar dekhe bahut hi sunder bhav
जवाब देंहटाएं