सोमवार, 10 अक्तूबर 2011

आज का चिंतन

जैसे जैसे हम बाह्य रूपों की विविधता में उलझते जाते हैं, वैसे-वैसे उनके मूलगत जीवन को भूलते जाते हैं.
   ......महादेवी वर्मा 

1 टिप्पणी:

  1. एक दम सच्ची बात ...
    समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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