शनिवार, 19 नवंबर 2011

आज का चिंतन

कर्मयोगी अपने लिए कुछ नहीं करता, अपने लिए कुछ भी नहीं चाहता. वह अपना कुछ मानता ही नहीं. इसलिए उसमें कामनाओं का नाश सुगमतापूर्वक हो जाता है और परम उद्देश्य की पूर्ती स्वतः हो जाती है.
........स्वामी विश्वास जी 

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