सर राखे सर जात है,सर काटे सर होत जैसे बाती दीप की ,जले उजालो होत
सर यानि अहंकार रखने से,हर कोई आपके अहंकार का मर्दन करता है.परन्तु अहंकार का खुद ही मर्दन करने से सबसे सम्मान मिलने लगता है.यानि आपकी विनम्रता सम्मानित और प्रकाशित होती है. जैसे दीप की बाती स्वयं ही जल कर उजाला कर देती है.
आलोचना से भी आहत तब ज्यादा होते हैं,जब हम अपने अहंकार को स्वयं मान देकर पोषित करते हैं.
कबीर दास जी कह गए हैं:-
जवाब देंहटाएंसर राखे सर जात है,सर काटे सर होत
जैसे बाती दीप की ,जले उजालो होत
सर यानि अहंकार रखने से,हर कोई आपके अहंकार
का मर्दन करता है.परन्तु अहंकार का खुद ही मर्दन
करने से सबसे सम्मान मिलने लगता है.यानि
आपकी विनम्रता सम्मानित और प्रकाशित होती है.
जैसे दीप की बाती स्वयं ही जल कर उजाला कर देती है.
आलोचना से भी आहत तब ज्यादा होते हैं,जब हम
अपने अहंकार को स्वयं मान देकर पोषित करते हैं.
आपकी सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार, वीना जी.