"भगवान को पाया जा सकता है - ठीक जैसे मैं तुम्हें देख रहा हूँ और तुमसे बात कर रहा हूँ. पर इसके लिए परिश्रम कौन करना चाहता है ? लोग स्त्री के लिए, संतान के लिए या संपत्ति के लिए रोते हैं. पर भगवत्प्रेम के कारण कौन रोता है ? पर अगर कोई सच्चे ह्रदय से भगवान् के लिए रोये तो वह अवश्य भगवान को प्रत्यक्ष पा सकेगा."
तक़दीर और तदबीर दोनों कार्यकारी हैं. भाग्य और पुरुषार्थ एक दूसरे के आश्रित हैं. आप आज जो पुरुषार्थ करते हैं वही कल आपका भाग्य बन जाएगा और जैसा आपका भाग्य है वैसा ही आपका पुरुषार्थ बन जाएगा.
अपना गम ले के कहीं और न जाया जाए, घर में बिखरी हुई चीजों को सजाया जाए. घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलो यूं कर लें, किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए. .......निदा फाज़ली
जब तक प्रेम की वीणा नहीं बजेगी, तब तक परमात्मा को नहीं पहचान सकोगे. तर्क से परमात्मा नहीं मिलता, बुद्धी से भी परमात्मा नहीं मिलता, प्रवचन से भी नहीं मिलता, वह जब भी मिलेगा प्रेम से ही मिलेगा.
ध्यान का सिर्फ इतना अर्थ है कि हम अतीत और भविष्य को छोड़ कर गुजर रहे वर्त्तमान क्षण में जियें. ऐसा करने के लिए आँख बंद करके कहीं बैठना जरूरी नहीं है. सब कुछ करते हुए भी हम ध्यान की अवस्था में रह सकते हैं. यही योग है.
ईश्वर ने कभी वायदा नहीं किया कि आकाश हमेशा नीला ही रहेगा, आजीवन रास्ते में फूल ही फूल बिखरे मिलेंगे. उसने कभी नहीं कहा कि आकाश में सूर्य हमेशा चमकता ही रहेगा, बादलों से कभी नहीं ढकेगा. उसने दुःख और वेदना के बगैर जीवन में शान्ति का कोई वायदा नहीं किया है.
.......ए.पी.जे. अब्दुल कलाम
सोमवार, 20 जून 2011
विवेकी पुरुष को अपने मन में यह विचार करना चाहिए कि मैं कहाँ हूँ, कहाँ जाऊँगा, मैं कौन हूँ, यहाँ किसलिए आया हूँ और किसलिए किसका शोक करूँ.