शील मानव जीवन का अनमोल रत्न है. उसे जिस मनुष्य ने खो दिया उसका जीना ही व्यर्थ है. वह चाहे जितना धनी अथवा भरे पूरे घर का हो, उसका कोई मूल्य नहीं रहता. .....वेदव्यास
शत्रु को उपहार देने योग्य सर्वोत्तम वस्तु है-क्षमा, विरोधी को सहनशीलता, मित्र को अपना ह्रदय, शिशु को उत्तम द्रष्टान्त, पिता को आदर और माता को ऐसा आचरण जिससे वह तुम पर गर्व करे, अपने को प्रतिष्ठा और सभी मनुष्य को उपकार. .......वालफोर
धन का उपयोग करने में प्राय दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें सदैव ध्यान में रखना चाहिये. पहली, अपात्र को धन देना और दूसरी, सुपात्र को धन न देना. .....अज्ञात
बड़ी सफलताओं के द्वार छोटी-छोटी सफलताओं से खुलते हैं. छोटी मंजिलें फतह करना शुरू कीजिये, एक दिन आप पायेंगे कि बड़ी मंज़िल स्वयं ही आपके द्वार पर आगई है. ......अज्ञात
आत्मविश्वास बढाने का तरीका यह है कि तुम वह काम करो जिसे तुम करते हुए डरते हो. इस प्रकार ज्यों-ज्यों तुम्हें सफलता मिलती जाएगी, तुम्हारा आत्मविश्वास बढता जाएगा. ............डेल कारनेगी
ईसाई को हिंदू या बौद्ध बनाना अथवा हिंदू या बौद्ध को ईसाई बनाना आवश्यक नहीं. परन्तु प्रत्येक को दूसरे की भावना आत्मसात करनी है और साथ ही अपना वैशिष्ट्य अक्षुण रखते हुए अपने ही नियमों के अनुसार विकास करना है. सर्व धर्म सम्मलेन ने यह सिद्ध कर दिया है कि धार्मिकता, पवित्रता और सहिष्णुता विश्व के किसी एक मठ की बपौती नहीं है और प्रत्येक व्यवस्था ने उदार चरित्र अन्यतम नर एवं नारी उत्पन्न किये हैं - प्रत्येक धर्मपताका पर अब प्रतिरोध के स्थान पर अंकित होगा 'लड़ो नहीं, साथ दो ' खंडन नहीं - संगम, समन्वय और शान्ति - विग्रह नहीं. ...........स्वामी विवेकानंद
आप दुखी इस लिये होते हैं क्योंकि स्तिथियों को अपने अनुकूल निर्धारित करना चाहते हैं. स्तिथियों को अपने हाल पर छोड़ दीजिए और तटस्थ द्रष्टा बनकर देखिये. अपने भीतर असीम सुख का अनुभव करेंगे.
यदि व्यक्ति को शान्ति चाहिए तो उसे शान्त रहने से कोई रोक नहीं सकता, क्योंकि शान्ति के लिये कुछ करना नहीं पडता. सिर्फ़ जो कर रहे हो, जिसके कारण अशान्ति है, उसे करना बंद करो. बस फिर शान्ति ही शान्ति है.
किसी की खुशियों के पल में भागीदार बनना आसान है, लेकिन हमें उसकी खुशियों का कारण बनने की कोशिश करनी चाहिए. दूसरों के कठिन समय में उनकी भावनाओं को साझा करो, लेकिन कभी उनकी कठिनाइयों का कारण न बनो. ...........अज्ञात