मैं देखता हूँ की जैसे जैसे आयु बीतती जाती है, वैसे-वैसे मैं नगण्य वस्तुओं में और भी महानता खोजता जाता हूँ। श्रेष्ठ पद पर आसीन होने से तो हर कोई महान हो जाएगा। कायर भी रंगमंच के प्रकाश में खड़ा कर दिया जाये तो साहस प्रदर्शित करेगा....संसार देख रहा है। मुझे तो सच्ची महानता अनवरत, अहर्निश, निशब्द अपना काम करते कृमि में अधिकाधिक स्पष्ट दिखायी दे रही है।
.....स्वामी विवेकानंद
बहुत सुन्दर विचार| धन्यवाद|
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