ध्यान का सिर्फ इतना अर्थ है कि हम अतीत और भविष्य को छोड़ कर गुजर रहे वर्त्तमान क्षण में जियें. ऐसा करने के लिए आँख बंद करके कहीं बैठना जरूरी नहीं है. सब कुछ करते हुए भी हम ध्यान की अवस्था में रह सकते हैं. यही योग है.
...............जे.कृष्णमूर्ति
जी, बिल्कुल सही....
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा …………॥यही ध्यान है सब कुछ करते हुये भी मन एक मे लिप्त रहे।
जवाब देंहटाएंबहुत सच कहा है...अपने कर्तव्यों को पूरा करना ही सबसे बड़ा योग है..
जवाब देंहटाएंatit to jeene nahi deta hai per kosish to jari rakhni hi hogi
जवाब देंहटाएंओशो ने भी तो कहा था किसी कार्य को इतनी तन्मयता से करना कि देह की सुधि न रहे-- घ्यान है।
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